विद्यालय संगठन , निर्देशन एवं परामर्श
School organisation, guidance and counselling
.For B.Ed and d.el.ed student
Chapter- Functions of school management
टेलर (Taylor) ने अपनी पुस्तक "Principles of Scientific Management" (1911) में प्रबन्धन के कार्यों का उल्लेख किया था। उसके बाद से आज तक अनेक विशेषज्ञों ने प्रबन्धन के विभिन्न कार्यों को समझाने की कोशिश की है। शिक्षा के क्षेत्र में भी इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर विद्यालय प्रबन्धन की भूमिका बताई जाती है।
विद्यालय प्रबन्धन के पाँच मुख्य कार्य इस प्रकार हैं —
(1) विद्यालय के कामों के लिए स्पष्ट लक्ष्य और नीतियाँ तय करना।
(2) उन कार्यक्रमों की योजना और विकास करना जो विद्यालय के उद्देश्यों को पूरा कर सकें।
(3) विद्यालय के लिए ऐसा संगठन बनाना जो योजनाओं को ठीक से लागू कर सके।
(4) विद्यालय चलाने के लिए आवश्यक संसाधन, धन और सामग्री की व्यवस्था करना और उसका सही प्रबन्ध करना।
(5) चल रहे कार्यक्रमों का मूल्यांकन (जांच) करना, कि वे कितने प्रभावी और सफल हैं।
इन सभी कार्यों का मुख्य उद्देश्य यह है कि विद्यालय में शिक्षा और सीखने की प्रक्रिया प्रभावी तरीके से हो सके।
अब इन पाँचों कार्यों को थोड़ा विस्तार से समझें —
(i) राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर शिक्षा की बड़ी नीतियाँ बनाई जाती हैं, लेकिन हर विद्यालय को अपनी कुछ स्वयं की नीतियाँ भी बनानी होती हैं, जो राष्ट्रीय नीति के अनुरूप हों। हर विद्यालय अपने विचारों और उद्देश्यों के अनुसार नीतियाँ तय करता है—कुछ विद्यालय चरित्र निर्माण पर जोर देते हैं, कुछ व्यावहारिक शिक्षा पर, तो कुछ सिर्फ परीक्षा परिणामों को ही मुख्य मानते हैं।
(ii) दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है — विद्यालय ऐसे कार्यक्रम तैयार करे, जिनसे उसके लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। प्रधानाध्यापक या प्रबन्धक लक्ष्य तय करते हैं और फिर उसके अनुसार कार्यक्रम बनाते हैं।
